Tattvartha Sutra (तत्त्वार्थ सूत्र)| Moksh Shastra

TATTVARTHA SUTRA MANGLACHARAN

TATTVARTHA SUTRA MANGLACHARAN

TATTVARTHA SUTRA- 1

Jain Tattvartha Sutra Introduction

महानुभव हम सभी लोग जैन पाठशाला के अंतर्गत जैन धर्म का एक महान ग्रंथ है तत्वार्थ सूत्र हम सब उसको पड़ेंगे। आप सब लोग ध्यान रखेंगे। जब इस महान ग्रंथ को पढ़ते हैं तो हमें टीवी के समक्ष बैठकर के चौकी में बैठें, पुस्तक साथ में रख ले, कुछ खाते पीते हुए चाय आदि पीते हुए इस ग्रंथ को नहीं पड़ेंगे, बहुत संयम रखेंगे, विनय भाव रखेंगे क्योंकि यह हमारा एक महान ग्रंथ है। यह ग्रंथ ऐसा ग्रंथ है जिसमें भगवान महावीर स्वामी की जो वाणी है, उस वाणी का सारा का सारा सार इस ग्रंथ में दिया गया है और यह जो ग्रंथ है संस्कृत साहित्य का प्रथम ग्रंथ है जैन आचार्य का, सूत्रात्मक ग्रंथ है। सूत्र ग्रंथ में जिसमें सार और संक्षेप भरा होता है ऐसा उमा स्वामी द्वारा लिखा गया यह ग्रंथ है। इस ग्रंथ के बारे में अनेक आचार्यों ने स्तुति की है, इसकी महिमा गाई है, टिकाएं आदि लिखी हुई है। हम सभी इस महान ग्रंथ को पढ़ने जा रहे हैं।

आप लोग प्रतिदिन इस ग्रंथ का स्वाध्याय करने के लिए नियमित रूप से अपने कॉपी पेन पुस्तक ले करके बैठेंगे और इसके नोट्स आदि भी तैयार करेंगे जिससे आपको इस ग्रंथ में प्रवेश करने से आप अनेक ग्रंथों का भी अध्ययन कर पाएंगे। तत्वार्थ सूत्र एक ऐसा ग्रंथ है जिसके पढ़ने से हम किसी भी ग्रंथ में प्रवेश कर सकते हैं। हमारे यहां पर भगवान महावीर स्वामी के द्वारा जो वाणी हैं उससे गणधर ने अनेक ग्रंथों की रचना की और उसका हम स्वाध्याय करके अपने जीवन में आनंद प्रकट कर सकते हैं। आत्मा को परमात्मा भी बना सकते हैं तो चलिए हम इस ग्रंथ को पढ़ना प्रारंभ करते हैं और इस ग्रंथ की अनेक जो  विशेषताएं हैं उसको भी हम पढ़ेंगे।

जैसा कि यह सूत्रात्मक ग्रंथ है। यह सूत्रात्मक ग्रंथ हर दर्शन में पाया जाता है। बुद्ध दर्शन, जैन दर्शन, न्यायायक दर्शन, मीमांसा दर्शन, न्याय दर्शन, योग दर्शन आदि अनेक दर्शन हैं और हर दर्शन में एक महत्वपूर्ण ग्रंथ, सूत्र ग्रंथ हैं।

जैसे न्याय दर्शन में न्याय सूत्र नाम का ग्रंथ है। न्यायायक दर्शन में न्यायायक एक सूत्र ग्रंथ है। वैशेषिक दर्शन में वैशेषिक सूत्र ग्रंथ है। बुद्धों में ब्रह्मसूत्र नाम का ग्रंथ है। वेदांत दर्शन में बादरायण सूत्र ग्रंथ है और योग दर्शन में योग सूत्र नाम का ग्रंथ है। ऐसे ही जैन दर्शन में यह तत्वार्थ सूत्र नाम का ग्रंथ है जो अपने आप में बहुत विशाल है। जैन धर्म का आधार स्तंभ ग्रंथ है यह ।

महानुभव यह ग्रंथ इतना आगे जाकर के अन्य लोगों को प्रभावित किया कि हमारे अनेक आचार्यों ने इस पर महान महान टिकाएं लिखी। आचार्य समन्तभद्र स्वामी हुए, आचार्य अकलंक स्वामी हुए, आचार्य पूज्यपाद स्वामी हुए, आचार्य विद्यानंदी स्वामी हुए उन्होंने इन ग्रंथों पर महान महान टीकाएं लिखी।

‘सर्वार्थसिद्धि’ नाम की टीका लिखी आचार्य पूज्यपाद स्वामी ने छठवीं शताब्दी में, जिसे तत्वर्थवृत्ती भी कहते हैं और आचार्य अकलंक स्वामी ने छठवीं सातवीं शताब्दी में या सातवीं आठवीं शताब्दी में ‘तत्वार्थ राजवार्तिक’ नाम की टीका लिखी और आचार्य विद्यानंदी स्वामी ने जो सातवीं आठवीं शताब्दी में हुए हैं उन्होंने तत्वार्थ ‘श्लोकवार्तिक’ नाम की टीका लिखी है।

स्वेताम्बर साहित्य में भी वहां जो आचार्य हुए उन्हें तत्त्वार्थ-अधिगम-सूत्रनाम की टिका लिखी, तो देखो सभी ने तत्वार्थ तत्वार्थ तत्वार्थ नाम से ही टिका लिखि है। किसने वृत्ति किसिने वर्तिका और किसी ने भास्य रूप में इसमें बहुत सुंदर सुंदर बातें लिखी हैं।

टीका जो होती है जो सूत्र हैं, सूत्र संक्षेप होते हैं और उनमें सार भरा होता है और आचार्य लोग जो अन्य आचार्य आते हैं तो अन्य शिष्यों के लिए सरलीकरण करने के लिए उसमें और विशेषताओं को देते हुए उसमें अर्थ निकाल कर के हम लोगों को और अच्छी तरह से समझाते हैं।

महानुभव हम सभी लोग इस ग्रंथ के बारे में पड़ेंगे और सर्वप्रथम मंगलाचरण करेंगे। आप सब लोग हाथ जोड़ लीजिए और तत्वार्थ सूत्र का मंगलाचरण करते हैं।

मोक्षमार्गस्य नेतारं, भेत्तारं कर्मभूभृताम्

ज्ञातारं विश्वतत्त्वानां, वन्दे तद्गुण लब्धये

अब इसका अर्थ देखिए क्या लिखा है? मोक्षमार्गस्य मोक्ष मार्ग के अपने बचपन में संस्कृत पड़ी होगी तो कर्ता ने कर्म को करण से आदि तो यहां सस्ती का एकवचन है। सस्ती एकवचन होता है ‘का की के’ तो मोक्ष मार्ग के। मोक्षमार्ग के क्या हैं आप? नेतारं नेता हैं, नेता मतलब प्रणेता है, मोक्ष मार्ग को बताने वाले हैं। नेता किसे कहते हैं जो मार्ग बताएं जो रास्ता बताएं अथवा कोई रास्ता पुराना है, उसमें उस को आगे बढ़ाएं। उसे कहते हैं नेता तो अरिहंत भगवान कैसे हैं? मोक्ष मार्ग के नेता हैं। वह हमें रास्ता बताते हैं। हमें मार्ग बताते हैं। सच्चा मार्ग, धर्म का मार्ग, आत्मा को परमात्मा बनाने का मार्ग तो इस प्रकार से मोक्षमार्ग के आप क्या हैं? नेता हैं।

भेत्तारं मतलब भेदन कर दिया है, नष्ट कर दिया है, क्षय को प्राप्त कर दिया है। क्या नष्ट कर दिया है, क्या भेद कर दिए हैं? अथवा टुकड़े-टुकड़े कर दिए हैं, क्या टुकड़े-टुकड़े कर दिए हैं? कर्मभूभृताम् मतलब? भू मतलब होता है पर्वत कर्म मतलब कर्म, कर्म रूपी पर्वतों को जिसने भेत्तारं क्या कर दिया है? भेदन कर दिया है। मतलब जो 8 कर्म थे अथवा 4 घातिया कर्म थे उन कर्मों का जिन्होंने भेदन कर दिया है। नष्ट कर दिया है, तो कर्म रूपी पर्वतों के समूह को जिन्होंने क्या किया है? भेदन किया है, नष्ट किया है, क्षय किया है।  

पहला विशेषण क्या बताया? मोक्षमार्ग के नेता हैं, कर्म रूपी पर्वतों का आपने भेदन किया है और तीसरी बात कह रहे हैं। ज्ञातारं जानने वाले हैं, किसको जानने वाले हैं? विश्वतत्त्वानां विश्व के समस्त तत्वों को जानने वाले है।

विश्व किसे कहते हैं? जहां पर छह द्रव्य पाई जाती है, उसे विश्व कहते हैं अर्थात जैन धर्म के अनुसार लोक और अलोक को विश्व कहते हैं।  

लोक जिसमें जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश, काल द्रव होते हैं

और अलोक आकाश में मात्र अनंत आकाश होता है।

उन दोनों को हम कहते हैं विश्व।

वर्तमान में जो विश्व कहते हैं, एक गोल गोल पृथ्वी है। हम उसे तो बहुत छोटी चीज है वो, वो विश्व नहीं है। विश्व सारा संसार जिस में आ जाता है लोक और अलोक। तो विश्व के तत्त्वानां विश्व में जितने पदार्थ हैं, जितने भी द्रव्य है, जितने भी पदार्थ हैं, उनको ज्ञातारं जाने वाले हैं, तो विश्व के समस्त तत्वों को जो जानते हैं।  

भगवान का जो ज्ञान होता है, केवल ज्ञान होता है। वह उसमें एक समय में युगपत समस्त द्रव्यों की समस्त पर्यायों को जानते हैं। समस्त पदार्थों के अनंत गुणों-पर्यायों को प्रति समय युगपत जानना। अनंत द्रव्य और अनंत द्रव्यों की अनंत पर्यायों उसमें भी वर्तमान की, भूत की और भविस्य की जिसको एक साथ एक समय में जान लेते हैं ऐसा निर्मल ज्ञान ऐसा विमल ज्ञान ऐसा अमल ज्ञान तो विश्वतत्त्वानां जो विश्व के समस्त तत्वों को जानने वाले हैं या जानते हैं, वन्दे नमस्कार करता हूं, क्या करता हूं मैं? ऐसे परमात्मा को मैं क्या करता हूं, नमस्कार करता हूं।

परमात्मा के 3 विशेषण बता दिए। क्या क्या बताया? पहले मोक्ष मार्ग के नेता हैं तो मोक्ष मार्ग के नेता होंगे, मतलब हित का उपदेश देने वाले होंगे तो इसमें हितोपदेशी पना आ गया। जो हितोपदेश है, हित का उपदेश देने वाला है, वही नेता है। देखो संसार में नेता जो होते हैं ना वह हित का उपदेश नहीं देते हैं। वह तो अपने स्वार्थ का उपदेश देते हैं जिससे उनका स्वार्थ सधता है ऐसा उपदेश देते हैं लेकिन मोक्ष मार्ग के जो नेता होते हैं उनका अपना कोई स्वार्थ नहीं होता है।

सब जीवों को मोक्ष मार्ग का निस्पृह हो उपदेश दिया। आप सभी लोग मेरी भावना में पढ़ते भी हैं। सब जीवो को संसार के समस्त जीवो को मोक्षमार्ग का, मोक्ष मतलब होता है सुख मोक्ष का अर्थ क्या होता है? मोह और क्षय जहां मोह का क्षय हो जाता है। मोह का क्षय जहां हो गया वहा आत्मा को सुख प्रकट हो जाएगा तो अनंत सुख कैसे मिले आपके लिए कैसे अनंत सुख की प्राप्ति हो, संसार में सभी जीव सुख चाहते हैं तो वैसा सुख की प्राप्ति कैसे हो? तो भगवान ने हमें कैसा उपदेश दिया, ऐसे अनंत सुख का उपदेश दिया। इसलिए सच्चे हितकारी यदि कोई है तो वह हमारे अरिहंत भगवान हैं। तो यहां पर अरिहंत भगवान का विशेषण बताया जा रहा है कि कैसे हैं अरिहंत भगवान? जो मोक्ष मार्ग के नेता हैं अर्थात जो हितोपदेशी हैं, फिर क्या बोला? कर्म रूपी पर्वतों को भेदन करने वाले हैं तो जिन्होंने अपने कषाय को नष्ट कर दिया है, ज्ञानावरणीय कर्म को नष्ट कर दिया है, दर्शनवर्णीय कर्म को नष्ट कर दिया है। राग द्वेष मोह को नष्ट कर दिया है। इस प्रकार से वह क्या हो गए?  वीतरागी हो गए। वीतरागी भगवान जिन्होंने राग द्वेष मोह कषाय को छोड़ दिया है। दर्शन मोहिनी चारित्र मोहिनी कर्म नष्ट कर दिए हैं। आत्मा को निर्मल कर दिया है। इस प्रकार से भगवान आप कैसे हो वीतरागी।

भगवान समस्त तत्वों को जानते हैं तो सर्वज्ञता आ गई। सर्वज्ञ में तीन अक्षर हैं। सर,  और ज्ञ, सर्व शब्द अलग कर लो और ज्ञ मतलब का अर्थ होता है जानना, अल्पज्ञ जो अल्प को जानता है, वह अल्पज्ञ है। धर्मज्ञ जो धर्म से पुणे है, धर्म को जानता है, विशेषज्ञ जो विशेषता को जानता है, वह विशेषज्ञ है। ऐसे सर्व को जानता है वह सर्वज्ञ है।

सर्वज्ञ कौन होते हैं? जो तीन लोक में या लोकालोक में समस्त पदार्थों को युगपत जानते हैं। 3 लक्षण अरिहंत भगवान के होते हैं, हितोपदेशी, वीतरागी और सर्वज्ञ पना।   

ऐसे परमात्मा को वंदे क्या करता हूं मैं? जो हितोपदेशी, वीतरागी और सर्वज्ञ है ऐसे परमात्मा को क्या कर रहा हूं, कौन नमस्कार कर रहे हैं, इस ग्रंथ के लेखक कौन हैं? आचार्य उमा स्वामी भगवान तो आचार्य उमा स्वामी कह रहे हैं मैं ऐसे परमात्मा को नमस्कार करता हूं। क्यों नमस्कार करता हूं? तो भैया हम जब नमस्कार करेंगे तो हम कुछ प्राप्त तो करेंगे।

तद्गुण लब्धये क्या बोल रहे हैं? तद्गुण उनके गुणों को लब्धये प्राप्ति के लिए, हे भगवान ! आपके जो गुण हैं उन गुणों की प्राप्ति के लिए मैं आपको नमस्कार करता हूं।

गुरुदेव नमोस्तु! नमोस्तु! नमोस्तु! गुरुदेव एक प्रश्न है मेरे मन में इस मंगलाचरण में अपने पंच परमेष्ठी भगवान में किस परमात्मा को नमस्कार किया जाता है? आपका प्रश्न है मंगलाचरण में किस परमात्मा को नमस्कार किया गया है। देखिए हमारे यहां 5 परमेष्ठी होते हैं। अरिहंत, सिद्ध, आचार्य उपाध्याय और साधु यहां पर आचार्य उमा स्वामी ने अरिहंत  परमात्मा को नमस्कार किया है क्योंकि अरिहंत परमात्मा जो है, जिनका समवसरण लगता है, दिव्यध्वनि खिरती है। सिद्ध भगवान के दिव्यध्वनि खिरती नहीं है और आचार्य उपाध्याय जो साधु हैं, उनको केवल ज्ञान की प्राप्ति नहीं हुई है तो केवल ज्ञान की जिनको प्राप्ति हो गई है ऐसे अरिहंत परमात्मा को नमस्कार किया गया क्योंकि अरिहंत परमात्मा किसे कहते हैं? 3 जिनमे बातें हो उन्हें अरिहंत परमात्मा कहते हैं जिनमें सर्वज्ञता हो, वीतरागता हो और हितोपदेशता हो उसे अपन अरिहंत परमात्मा कहते हैं। सभी लोग मेरी भावना पढ़ते हैं तो उसकी दो लाइन शुरू की जो है उसमें इसी अरिहंत परमात्मा को नमस्कार किया है।

जिसने राग-द्वेष कामादिक जीते, सब जग जान लिया

सब जीवों को मोक्ष मार्ग का, निस्पृह हो उपदेश दिया।  

जिसने राग-द्वेष कामादिक जीते अर्थात वह वीतरागी हो गया। सब जग जान लिया अर्थात सर्वज्ञ हो गए। सब जीवों को मोक्ष मार्ग का, निस्पृह हो उपदेश दिया अर्थात वह हितोपदेशी हो गए। इस प्रकार से इस मंगलाचरण में भी आचार्य उमा स्वामी ने अरिहंत परमात्मा को नमस्कार किया है।

महानुभाव इस ग्रंथ के बारे में कुछ जानकारियां ले लेते हैं। कोई भी ग्रंथ प्रारंभ करते हैं तो उसमें 6 बातों का ध्यान दिया जाता है, आपको ग्रंथ के प्रारंभ करने में सर्वप्रथम 6 बातों का ध्यान रखा जाता है। पहली बात लिखी है ग्रंथ का नाम यदि हम शास्त्र उठा कर बैठ गए और हमें ग्रंथ का नाम ही नहीं पता है तो ऐसा नहीं। सबसे पहले हमें यह पता चलना चाहिए, इस ग्रंथ का नाम क्या है? ग्रंथ का नाम है तत्वार्थ सूत्र

दूसरा क्या लिखा हुआ है। ग्रंथ के रचयिता कौन हैं? आचार्य उमा स्वामी हैं। इनका नाम गृद्ध पिच्छाचार्य नाम भी पढ़ा था। अनेक शिलालेखों में उमा स्वामी का नाम गृद्ध पिच्छाचार्य भी नाम आता है। गृद्ध पिच्छाचार्य का मतलब क्या है? गृद्ध मतलब जो गिद्ध है, उसके पंख लेते हैं इसका अर्थ ऐसा नहीं है। जिनको अपने ही जिन शासन में गृद्धता थी जिनको यह मयूर की पिच्छिका लेने में गृद्धता थी क्योंकि उस समय लोग अनेक अनेक प्रकार की पिच्छि, कोई वस्त्र की पिच्छि रखता था, कोई गो पिच्छि रखता था, कोई किसी प्रकार कपड़े रखता था। बोले नहीं, मयूर पिच्छि ही जो अहिंसक है, संयम का उपकरण है जिसमें उनकी इस प्रकार की गृद्धता (Greediness लोभ, आसक्ति) इसलिए उनका नाम गृद्ध पिच्छाचार्य भी पड़ा और वैसे नाम जो है 11वीं 12वीं की शताब्दी के शिलालेखों में उनका नाम आचार्य उमा स्वामी आया है। अनेक ग्रंथों में आचार्यों ने बड़े आदर के साथ उनका नाम उमा स्वामी लिया है तो पहला हमने देखा ग्रंथ का नाम तत्वार्थ सूत्र है। यह याद करना है दूसरा अपन ने क्या देखा ग्रंथ के रचयिता तो आचार्य उमा स्वामी भगवान। यह आचार्य कुंदकुंद स्वामी के पट्ट शिष्य हैं। आचार्य कुंदकुंद समस्त ग्रंथ प्राकृत भाषा में लिखे, प्राकृत भाषा में लिखे लेकिन उमा स्वामी ने उस समय यह पहला जो ग्रंथ है संस्कृत भाषा में लिखा सुत्रात्मक शैली में लिखा और जैन धर्म का आधार स्तंभ यह ग्रंथ बना।

अब यह तीसरा जो बात लिखी है कि मंगलाचरण में किसे नमस्कार किया है? तो अभी बताया आपको, अरिहंत देव को नमस्कार किया है।

ग्रंथ का प्रमाण, यदि हम पहले से यह जान लें कि ग्रंथ कितना बड़ा है। ग्रंथ में क्या अध्याय हैं तो उससे क्या होगा, हमको संतुष्टि हो जाएगी कि हमको इतना पढ़ना है। हम इसके बारे में नहीं जानेंगे तो हमको तनाव रहेगा कि कितना है कितना नहीं है तो इस ग्रंथ में 10 अध्याय हैं, 10 चैप्टर हैं और सूत्र कितने हैं? 357 सूत्र हैं। इसका हमको नॉलेज हो जाने से हमारे मन में यह हो जाता है कि हमको 10 अध्याय पढ़ना है और टोटल 357 सूत्र पढ़ना है, जिससे पढ़ने में हमारी रुचि बन जाती है। हमको पता चल जाता है इस ग्रंथ का प्रमाण कितना है तो हमने ग्रंथ का प्रमाण भी जान लिया।

अब यह भी पता चल जाए कि ये ग्रंथ किस निमित्त से लिखा गया है? तो यह भव्य जीवो के निमित्त से लिखा गया है।

प्रवचंद आचार्य की तेरहवीं शताब्दी की टीका मिलती है और उसमें उन्होंने एक घटना लिखी है कि उमा स्वामी महाराज आहार करने गए थे तो एक वसतिका में एक गांव के वसतिका मैं घर में वहां पर लिखा था। दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्गः यह शब्द लिखा हुआ था। सिद्धया नाम का एक श्रावक था। उसके घर में बाहर पाटी में यह लिखा हुआ था। जब यह सूत्र देखा तो उन्होंने वहां पर चौक पड़ी हुई थी उसके आगे लिख दिया सम्यक् शब्द और वह आ गए। जब सिद्धया वापस आया तो उसने देखा यह किसने लिखा तो बोले जैन गुरु ने लिखा। तो वह वहां पर गए और जाकर उन्हे नमस्कार किया और पूछा कि आत्मा का हित कैसे होगा। मोक्ष मार्ग की प्राप्ति कैसे होगी तो उन्होंने बताया सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्गः से ही इसमें हमें मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है। मात्र दर्शन ज्ञान चारित्र आने से मोक्ष की प्राप्ति नहीं होती है। किसी में श्रद्धा कर लो। कुछ भी जान लो। कुछ भी चारित्र धारण कर लो, नहीं सम्यक् दर्शन होना चाहिए, सम्यक् ज्ञान होना चाहिये और सम्यक् चारित्र होना चाहिए। इस प्रकार से उन्होंने यह सूत्र की उत्पत्ती उस भव्य जीव के निमित्त से हुई।

तो सिद्धया जो है वह प्रश्न करते गए और यहां पर आचार्य उमा स्वामी सूत्र बनाते गए और उनके निमित्त से यह ग्रंथ जो है, निर्मित हुआ और आज समस्त संसार में जैन लोग और अजैन लोग सभी इस ग्रंथ को पढ़कर के जिन शासन को अच्छी तरह से समझ रहे हैं।

किस हेतु से हमें इस ग्रंथ को पढ़ना है? हमें पता चल जाए कि हमें कुछ प्राप्त होना है तो हम इसको पढ़ेंगे। और अगर हमको लाभ ही पता नहीं चलेगा तो हम इसको पढ़ेंगे नहीं तो हेतु क्या है? प्रयोजन क्या है? हम इसे मोक्ष की प्राप्ति के हेतु के लिए हम इस ग्रंथ को पढ़ते हैं।

आप सब लोगों ने आज इतना जाना इतना समझा मंगलाचरण का अर्थ समझा, और यह ग्रंथ में 6 जानने योग्य बातें समझी और इसमें भिन्न-भिन्न आचार्यों ने क्या-क्या टीका टिप्पणी की है इसके बारे में आपने जाना और इसके बारे में डिटेल रूप से हम पढ़ेंगे। विस्तार रूप से और इसके मंगलाचरण के बारे में समझेंगे। आज इस ग्रंथ के बारे में जो हमने आप को सिखाया है, आप इसको नोट्स बना लेंगे और इसको दोबारा पड़ेंगे।

 

 

 

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