“तव” – आपका, तुम्हारा ।
अस्त- समस्त- दोषं – निर्दोप–समस्त दोपों से रहित ।
विशेशार्थ – (अस्त) – ध्वम्त, रहित (समस्त) सम्पूर्ण, (दोष) – अवगुण अर्थात् समस्त दोष रहित ।
स्तवनम् – गुणो का कीतन – स्तवन – स्तुति ।
“दूरे”, “आस्ताम्” -दूर रहें।
“त्वत्संकथा” – आपकी सद्वार्ता – आपकी चरित्रचर्चा ।
“अपि” – भी।
“जगताम्” – समस्त संसारी जीवों के !
“दुरितानि” – पापों को. अपराधों को।
“हन्ति” – हनन करती है, नष्ट करती है।
“सहस्र- किरणः” – सूर्य ।
विशेषार्थः – (सहस्र) हजार है (किरण:) – रश्मि, जिसमे ऐसा वह सहस्त्रकिरण: अर्थात सूर्य, दिनकर ।
“तस्य” – उसकी।
“प्रभा एव” – कान्ति ही।
“पद्माकरेषु” – सरोवरों में ।
विशेषार्थ – (पदम) कमल, उसका (आकर) – समुह जिसमें हो उसे कहा जाता है पद्माकर ।
“जलजानि” – कमलों को।
विशेषार्थ:– जल में पैदा हो, उत्पन्न हो वह जलज अर्थात् कमल ।
“विकास- भाञ्जि” – विकसित, प्रफुल्लित ।
“कुरुते” – कर देती है।