Bhaktamar Stotra Sanskrit-7 [Mahima Path Lyrics]। भक्तामर स्तोत्र
Bhaktamar Stotra-7 Shloka/Mahima/Paath/Chalisa
Sanskrit (सर्व संकट निवारक काव्य) | जिनस्तवन से पापक्षय
त्वत्संस्तवेन भव- सन्तति- सन्निबद्धं
पापं क्षणात्क्षय- मुपैति शरीर- भाजाम् ।
आक्रान्त- लोक- मलिनील- मशेष- माशु
सूर्यांशु- भिन्न- मिव शार्वर- मन्धकारम् । । 7 । ।
Hindi
जिनवर की स्तुति करने से, चिर संचित भविजन के पाप
पल भर में भग जाते निश्चित, इधर-उधर अपने ही आप ।
सकल लोक में व्याप्त रात्रि का, भ्रमर सरीखा काला ध्वान्त
प्रातः रवि की उग्र किरण लख, हो जाता क्षण में प्राणान्त । । 7 । ।
Sanskrit
Tvat-samstavena Bhavasantati sannibaddham
Pāpam Kshanātkshayamupaiti sharirabhājam
Akrānta-loka-mali-nila-mashésha-māshu
Suryanshu-bhinnamiva shārvara-mandhakāram । । 7 । ।
Bhaktamar Stotra/Mahima/Paath Sanskrit No-7 with Hindi Meaning
Bhaktamar Stotra-7 (Shloka/Mahima/Kavya/Paath) Mp3 Lyrics
कड़े शब्दों के शब्दार्थ (Meaning of difficult Sanskrit words)
“त्वत्संस्तवेन” – आपके स्तवन से।
विशेषार्थ – (त्वत्) आपके । (संस्तवेन) सारभूत स्तवन। वही हुआ त्वत्संस्तवेन, उसके द्वारा। जिस स्तवन में प्रभु के सद्भूत गुणों का कीर्तन हो उसे संस्तव समझना चाहिए ।
“शरीर- भाजाम्” – देहधारी जीवों का – प्राणियों का।
“भव- सन्तति- सन्निबद्धं” – परम्परागत भवभवान्तरों से बंधा हुआ।
विशेषार्थ – (भव) – जन्म जरा मृत्यु उसकी (सन्तति) – परम्परा, वही हुआ भव सन्तति उसमें “सन्निबद्धं” – बंधा हुआ—जकड़ा हुआ वही हुआ भव- सन्तति- सन्निबद्धं ।
“पापं” – पापकर्म – दुष्कर्म ।
“आक्रान्त- लोकम्” – समस्त लोक में फैले हुए – संसार भर में व्याप्त ।
विशेषार्थ – (आक्रान्त) आवृत, (लोक) पर्यन्त, घिरा हुआ वही हुआ आक्रान्त लोक।
“अलिनीलम्” – भ्रमर के समान काला।
विशेषार्थ – (अलि) भ्रमर, उसके समान (नील) वही हुआ मलिनील अर्थात् काला ।
“सूर्यांशु- भिन्नम्” – सूर्य की किरणों से छिन्न-भिन्न (लुप्त) किया हमा।
विशेषार्थ – (सूर्य) रवि, उसकी (अंशु) किरणें वही हुआ सूर्यांशु । उनके द्वारा “भिन्नम्”-भेदा हुआ वही हुआ सूर्यांशु- भिन्नम् ।
“शार्वरम्” – रात्रि विषयक – रात्रि में होने वाले।
“अन्धकारम्” – अंधकार के।
“इव” – समान ।
अशेषम् – सब का सब।
“क्षणात्” – पल भर में – क्षण भर में – जल्दी से जल्दी।
“क्षयम्” – विनाश को।
“उपैति” – प्राप्त हो जाता है।
Hindi Meaning (भावार्थ) of Bhaktamar Stotra/Mahima No-7
आपके उत्कृष्ट स्तवन करने से जनम जनम की परम्परा से बांधे गए संसारी जीवों के पाप कर्म क्षण भर में क्षय को प्राप्त हो जाते है I जैसे सम्पूर्ण लोक में व्याप्त भौरे के समान नीला/काला रात्रि का अन्धकार उसी तरह पूर्ण रूप से शीघ्र ही सूर्य की किरणों से छिन्न भिन्न हो जाता है I
हे प्रभो! जिस प्रकार भ्रमर समूह के समान रात्रि का सघन काला अन्धकार सूर्य की किरणों का स्पर्श पाते ही पूर्णरूपेण नष्ट हो जाता है । उसी प्रकार आपके कीर्तन से जीवधारियों के जन्म-जन्मान्तरों से उपार्जित एवं बद्ध पाप कर्म तत्काल ही समूल नष्ट हो जाते हैं ।
इस छन्द में भगवत् भक्ति का फल आचार्यश्री के द्वारा निरूपित किया गया है। संसारी जीव निरन्तर मिथ्यात्व अविरति प्रमाद कषाय और योगों के द्वार से पापाश्रव करके कर्म बन्धन में बंधता रहता है। कर्म बन्धनों से जन्म जन्मान्तरों तक चतुर्गतियों में परिभ्रमण करता रहता है। जहाँ उसे जन्म जरा मरण रोग शोक आदि नाना प्रकार की आधि-व्याधि और उपाधियों से त्रस्त होना पड़ता है, कर्म बन्धन से मुक्ति का सबसे सुगम-सरल साधन केवल भगवत् भक्ति ही है।
जिनेश्वर देव के गुणों के स्मरण से प्रशस्त राग के कारण शुभाश्रव शुभबन्ध का स्थिति और अनुभाग बढ़ता जाता है और अशुभाश्रव अशुभबन्ध का स्थिति अनुभाग क्रमशः कम हो जाता है यहां तक कि उत्कट भक्ति से आबद्ध सम्पूर्ण कर्म क्षय को प्राप्त होते है ।
जिस प्रकार सूर्य की किरण में रात्रि का सघन काला अन्धकार पौ फटते ही विलीन हो जाता है उसी प्रकार आपके दर्शन स्मरण रूपो सम्यक्त्व की किरण से मिथ्यात्व रूपी अन्धकार क्षण भर में नष्ट हो जाता है।
मानव हृदय में जब अपने आदर्श के गुणों का आलोक भर जाता है तो फिर कल्मष रूपी अन्धकार वहाँ कसे ठहर सकता है ? भला कहीं एक म्यान में दो तलवारें रह सकती हैं – अर्थात् कभी नहीं ।
मिथ्यात्व तो तभी तक था जब तक कि हृदय में जिनेन्द्र भक्ति का प्रखर प्रकाश नहीं था। मानव हृदय में श्री जिनेन्द्रदेव के गुणों का प्रकाश होते ही उसमें छुपे बैठे हुए समस्त सांसारिक पाप कर्म तुरन्त ही समाप्त हो जाते हैं और इसीलिए ही भक्त-आत्मा आत्म विभोर हो निरन्तर सोचता है कि – श्री जिनराज के चरण कमलों का स्मरण अनन्तानन्त संसार की परम्परा को नाश करने वाला है। भगवन् ! आप मुझे अपनी शरण में लेलो।