“त्वत्संस्तवेन” – आपके स्तवन से।
विशेषार्थ – (त्वत्) आपके । (संस्तवेन) सारभूत स्तवन। वही हुआ त्वत्संस्तवेन, उसके द्वारा। जिस स्तवन में प्रभु के सद्भूत गुणों का कीर्तन हो उसे संस्तव समझना चाहिए ।
“शरीर- भाजाम्” – देहधारी जीवों का – प्राणियों का।
“भव- सन्तति- सन्निबद्धं” – परम्परागत भवभवान्तरों से बंधा हुआ।
विशेषार्थ – (भव) – जन्म जरा मृत्यु उसकी (सन्तति) – परम्परा, वही हुआ भव सन्तति उसमें “सन्निबद्धं” – बंधा हुआ—जकड़ा हुआ वही हुआ भव- सन्तति- सन्निबद्धं ।
“पापं” – पापकर्म – दुष्कर्म ।
“आक्रान्त- लोकम्” – समस्त लोक में फैले हुए – संसार भर में व्याप्त ।
विशेषार्थ – (आक्रान्त) आवृत, (लोक) पर्यन्त, घिरा हुआ वही हुआ आक्रान्त लोक।
“अलिनीलम्” – भ्रमर के समान काला।
विशेषार्थ – (अलि) भ्रमर, उसके समान (नील) वही हुआ मलिनील अर्थात् काला ।
“सूर्यांशु- भिन्नम्” – सूर्य की किरणों से छिन्न-भिन्न (लुप्त) किया हमा।
विशेषार्थ – (सूर्य) रवि, उसकी (अंशु) किरणें वही हुआ सूर्यांशु । उनके द्वारा “भिन्नम्”-भेदा हुआ वही हुआ सूर्यांशु- भिन्नम् ।
“शार्वरम्” – रात्रि विषयक – रात्रि में होने वाले।
“अन्धकारम्” – अंधकार के।
“इव” – समान ।
अशेषम् – सब का सब।
“क्षणात्” – पल भर में – क्षण भर में – जल्दी से जल्दी।
“क्षयम्” – विनाश को।
“उपैति” – प्राप्त हो जाता है।