घटनाएं घटती है, घट कर निकल जाती है। कुछ लोग हैं जो घटनाओं से पूरी तरह प्रभावित होते हैं और कुछ लोग हैं जो मात्र घटनाओं के साक्षी बन करके जीते हैं I आचार्य मानतुंग के साथ घटित घटना उनके लिए महज घटना थी। वे उसके साक्षी बन करके जी रहे थे। वीतराग भाव से उन ने उसे स्वीकार किया था। उस घटना के क्रम में एक तरफ राजा ने नाराज होकर उन पर बंधन बांधा। आचार्य मानतुंग उससे बिलकुल बेखबर थे। उस बंधन का उन्हें रंच मात्र ध्यान नहीं था।
लेकिन एक दूसरा बंधन जिसे उन्होंने खुद स्वीकार किया था। वह बंधन था भक्ति का बंधन। वे प्रभु परमात्मा से इस तरह एक तान हो गए थे कि उन्हे उसके अलावा और कुछ अच्छा लगता ही नहीं। उस भक्ति के बंधन में बंद कर वो प्रभु में शनलीन होने जा रहे थे। कल कहां गया कि भगवान की भक्ति, में अल्प बुद्धि वाला होकर कर रहा हूं। पर मुझे मालूम है जो महा बुद्धि वाले वे भी आपकी भक्ति नहीं कर सकते। आप की स्तुति नहीं कर सकते। जब वह नहीं कर सकते तो मैं क्यों ना करूं, मैं भी उसी तरह बनू । आज और एक कदम आगे बोल रहे हैं। मैं अपनी स्थिति को अच्छी तरह से जानता हूं। मैं बुद्धिहीन हूं, शक्तिहीन हूं, बालक की तरह असमर्थ हूं, लज्जाहीन हूं। मेरी स्थिति का मुझे पूरी तरह पता है। लेकिन फिर भी मैं आप की भक्ति करने के लिए अंदर से उत्प्रेरित हो रहा हूं। क्यों? मेरे हृदय में आपके प्रति भक्ति उमड़ रही है। क्यों? तो उसका उत्तर! अगले छंद में।
सोऽहं तथापि तव भक्ति- वशान्मुनीश
कर्तुं स्तवं विगत- शक्ति- रपि प्रवृत्तः
प्रीत्यात्म- वीर्य- मविचार्य्य मृगी मृगेन्द्रं
नाभ्येति किं निज- शिशोः परिपालनार्थम्
इस छंद का जो प्रचलित अर्थ है पहले हम उसकी चर्चा करें। सोऽहं वह मैं हूं वह कौन हूं? लज्जाहीन, बुद्धिहीन, शक्तिहीन, बालक की तरह चंद्रमा के प्रतिबिम्ब को पकड़ने की चेष्टा करने वाला, नासमझ नादान वह मैं। तथापि इतना सब कुछ होने पर भी, तव भक्ति- वशात् आपके भक्ति के वशीभूत होकर। किस के वशीभूत होकर? आपकी भक्ति के वशीभूत होकर। क्या कर रहा हूं? विगत- शक्ति- अपि शक्तिहीन होकर भी शक्ति रहित होकर भी स्तवं कर्तुं प्रवृत्तः आपकी स्तुति करने के लिए प्रवृत्त हो गया हूं। क्या करने के लिए प्रवृत्त हो गया हूं? आप के स्तवन के लिए प्रवृत्त हो गया हूं। मैं जान रहा हूं मुझ में बुद्धि नहीं, मैं जान रहा हूं मुझ में शक्ति नहीं, मुझ में कोई ताकत नहीं। मैं बालक जैसी चेष्टा कर रहा हूं। मैं लज्जा हीन होता हुआ भी आपकी भक्ति कर रहा हूं। आपकी स्तुति में प्रवृत्त हो रहा हूं। क्यों? तव भक्ति- वशात् आपकी भक्ति की वजह से, भक्ति के वशीभूत होकर I हे मुनिश ! हे मुनियों के ईश! हे मुनियों के नाथ! मानतुंग आचार्य यह नहीं कह रहे कि मेरे ईश, वह कह रहे मेरे नहीं, मेरे जैसे सभी मुनियों के ईश, सभी मुनियों के ईश नहीं, सारे जगत के ईश, हे जगदीश ! हे मुनिश ! हे मुनिनाथ। मैं अपनी स्थिति को भलीभांति जानते हुए भी आपकी स्तुति में प्रवृत्त हो रहा हूं। शक्तिहीन होते हुए भी आपकी स्तुति करने के लिए प्रवृत्त हूं।
उदाहरण क्या दिया प्रीत्यात्म- वीर्य- मविचार्य्य मृगी मृगेन्द्रं किं नाभ्येति अपितु अभ्यति एव् क्या कोई हिरनी? अपने बच्चे को बचाने के लिए अपनी शक्ति और सामर्थ्य का विचार किए बिना सिंह के सामने नहीं आती, अवश्य आती है ! बात को थोड़ा गहराई से समझना है। उदाहरण क्या दिया जैसे किसी हिरनी के सामने उसके बच्चे को खूंखार शेर ने पकड़ लिया हो। तो शेर पकड़ ले तो उस घड़ी हिरनी अपनी असमर्थ और अल्प शक्ति का विचार किए बिना शेर का मुकाबला करने के लिए आगे आ जाती है, छोड़ो कुछ भी हो मेरे बच्चे को तुम मेरे जीते जी छू नहीं सकते। तो जैसे हिरनी अपने बच्चे के प्रति प्रीति रखने के कारण अपनी सामर्थ्य का विचार किए बिना शेर का मुकाबला करने के लिए तत्पर हो जाती है क्योंकि वह प्रीति से भरी है। प्रभु हिरनी के हृदय में बच्चे के प्रति प्रीति है, मेरे हृदय में आपके प्रति प्रीति है और वह मेरी भक्ति बनकर प्रकट हो रही है। मैं भक्ति के वशीभूत हूं। 3 शब्दों पर ध्यान देना प्रीति शक्ति और भक्ति। प्रीति यानि प्रेम, प्रेम एक प्रकार का संवेग है। जब मनुष्य के हृदय में कोई संवेग जगता है तो उसके अंदर असाधारण शक्ति प्रकट होना शुरू हो जाती है। उसकी शक्ति उद्घाटित होने लगती है। शक्ति प्रकट होती है। जैसे कई बार कोई व्यक्ति गुस्से में होता क्रोध का भी एक संवेग है। मनोवैज्ञानिक इस बात को कहते हैं जब क्रोध हो तो आदमी के अंदर अतिरिक्त ताकत आ जाती है। क्रोध की स्थिति में उस सामान को भी उठा लेता है जिसे सामान्य स्थिति में आदमी हिला ना सके तो जैसे क्रोध का संवेग होता है, वैसे ही प्रेम का भी संवेग है। प्रीति प्रभु से, भक्ति प्रभु की ! मेरे मन में प्रीति है और प्रभु के प्रति भक्ति है तो शक्ति न होने पर भी शक्ति स्वतः प्रकट हो जाती है। वो प्रीति की शक्ति है जो भक्ति से प्रेरित है। क्या हिरनी आगे नहीं आती है? अपितु आती ही है!