Question & Answers:
भक्तामर स्तोत्र 45 के प्रश्न उत्तर:
Q1: इस काव्य में किस भय का वर्णन किया गया है?
Ans1: इस काव्य में जलोदर रोग संबंधी होने वाले भय का वर्णन किया गया है?
Q2:जलोदर रोग क्या है?
Ans2: पेट से संबंधित यह एक महाभयंकर रोग है जिसमें पेट के अन्दर पानी अति मात्रा में संग्रहीत होने लगता है। जिसके कारण पेट का फूलना और हाथ-पैरों में सूजन आना शुरू हो जाती है।
Q3: इस रोग से ग्रसित कैसे लोग भी रोग से मुक्ति पा जाते हैं?
Ans3: रोग की पीड़ा- भार से झुके हुये, अत्यन्त चिन्तित अवस्था को प्राप्त और छोड़ दी है जीवन की आशा जिन्होंने ऐसे मनुष्य भी रोग मुक्त (निरोगी) हो जाते हैं।
Q4: किसके प्रभाव से निरोगी हो जाते हैं?
Ans4: भगवान के चरण कमलों की धूलि रूप अमृत के लगाने से मनुष्य निरोगी हो जाते हैं।
Q5: रोग मुक्ति के साथ-साथ प्रभु-पद रज रूप अमृत भक्त के जीवन में क्या अतिशय दिखलाता है?
Ans5: रोग मुक्ति के साथ-साथ प्रभुपदरज के प्रभाव से भक्त का शरीर कामदेव जैसा सुन्दर हो जाता है।
Q6: इस काव्य के माध्यम से आचार्य महाराज क्या कहना चाह रहे हैं?
Ans6: आचार्य महाराज कहना चाह रहे हैं कि जो भी भक्त पुरुष भगवान के चरणों का ध्यान करता है, उनके पुनीत चरणों की पावन रज को लगाता है, वह समस्त शारीरिक व्याधियों से मुक्त हो जाता
Q7: भगवान की चरण रज क्या शारीरिक व्याधियाँ ही दूर करती हैं?
Ans7: नहीं, भगवान की चरण रज शारीरिक व्याधियों के साथ साथ आत्मा में लगी जन्म जरामरण की व्याधि से भी मुक्ति दिला देती है।
Q8: भगवान की भक्ति से व्याधियाँ (रोग) दूर होने के क्या कोई उदाहरण मिलते हैं?
Ans8: प्रथमानुयोग के उदाहरण
a. श्रीपाल सहित 700 कुष्ट रोगियों का कुष्ट दूर हुआ।
b. वादिराज मुनिराज की कुष्ट काया कंचन जैसी हो गई।
c. समंतभद्र स्वामी की भस्मक व्याधि दूर हुई।
d.पूज्यपाद स्वामी को पुनः नेत्र ज्योति प्राप्त हुई।