“गुण–समुद्र!” – हे गुणों के समुद्र – हे गुणसागर ।
विशेषार्थ – गुणों के समुद्र – गुण-समुद्र यहां गुण शब्द से तात्पर्य ज्ञान, दर्शन चारित्र आदि आत्मा के अनन्त गुणों से समझना चाहिए ।
“बुद्ध्या” – बुद्धि के द्वारा।
“सुरगुरु प्रतिमः” – बृहस्पति के समान । सुरगुरु – वृहस्पति, उनके प्रतिम – समान, वही हुआ सुरगुरु प्रतिमः ।
“अपि” – भी।
“क:” – कौन मनप्य।
“ते” – तुम्हारे, आपके ।
“शशाङ्क–कान्तान्” – चन्द्रमा तुल्य उज्ज्वल – ऐसा
विशेषार्थ – शशाङ्क – चन्द्रमा, उस जैसी कान्त – कान्ति वाला उज्ज्वल वही हुआ शशाङ्क-कान्तान् ।
“गुणान्” – गुणो को।
“वक्तुं” – कहने के लिए, कहने में ।
“क्षमः” – समर्थ है ?
“वा” – अथवा।
“कल्पान्त– काल– पवनोद्धत” – प्रलय काल (Doomsday) के तूफानी (gales, very strong wind) तेज थपेड़ों से उछल रहे है मगरमच्छ घड़ियाल आदि भयंकर जल जंतु जिसमे ऐसे।
विशेषार्थ – (कल्प) – युग, उसका (अन्त) कल्पान्त, वही हुआ कल्पान्तकाल अर्थात् प्रल्यकाल, उस प्रलयकाल की प्रचण्ड-तेज आंधी में उछल रहा है मगरमच्छ घड़ियाल आदि जलचरों का समुदाय, वही हुआ कल्पान्त– काल– पवनोद्धत ।
शास्त्रोक विधान है कि जब प्रलय काल होता है तब भयंकर आंधी चलती है और इससे बड़े बड़े समुद्रों में उत्ताल (जिसका तल उठा हो, convex) तरंगें उठती हैं जिससे कि उसके अथाह जल में रहने वाले मगरमच्छ घड़ियाल आदि जलचरों का समूह ऊपर आ-आकर उछलने-कूदने लगता है और फिर समुद्र का वह अतल (बिना पेंदे का )-जल पृथ्वी पर सर्वत्र फैल कर प्रलयंकारी (Catastrophic) दृश्य उपस्थित कर देता है।
“अम्बुनिधिं” – जल-राशि – समुद्र को
विशेषार्थ – (अम्बु) – जल, उसका (निधि) – भण्डार, वही हुआ अम्युनिधि अर्थात् समुद्र !
“भुजाभ्याम्” – दोनों भुजाओं से ।
“तरीतुम्” – तैरने के लिए तैरने में।
“क:” – कौन मनुष्य?
“अलम्” – समर्थ है ?