Bhaktamar Stotra Sanskrit-4 [Mahima Path Lyrics]। भक्तामर स्तोत्र
Bhaktamar Stotra-4 Shloka/Mahima/Paath/Chalisa
Sanskrit
वक्तुं गुणान् गुण- समुद्र! शशाङ्क-कान्तान्
कस्ते क्षमः सुरगुरु- प्रतिमोऽपि बुद्ध्या ।
कल्पान्त- काल- पवनोद्धत- नक्र- चक्रं
को वा तरीतु- मलमम्बुनिधिं भुजाभ्याम् ।।4।।
Bhaktamar Strotra 4th Shloka । भक्तामर स्त्रोत श्लोक 4 (With Hindi meaning, lyrics, Paath, text, image presentation)
कड़े शब्दों के शब्दार्थ (Meaning of difficult Sanskrit words)
“गुण–समुद्र!” – हे गुणों के समुद्र – हे गुणसागर ।
विशेषार्थ – गुणों के समुद्र – गुण-समुद्र यहां गुण शब्द से तात्पर्य ज्ञान, दर्शन चारित्र आदि आत्मा के अनन्त गुणों से समझना चाहिए ।
“बुद्ध्या” – बुद्धि के द्वारा।
“सुरगुरु प्रतिमः” – बृहस्पति के समान । सुरगुरु – वृहस्पति, उनके प्रतिम – समान, वही हुआ सुरगुरु प्रतिमः ।
“अपि” – भी।
“क:” – कौन मनप्य।
“ते” – तुम्हारे, आपके ।
“शशाङ्क–कान्तान्” – चन्द्रमा तुल्य उज्ज्वल – ऐसा
विशेषार्थ – शशाङ्क – चन्द्रमा, उस जैसी कान्त – कान्ति वाला उज्ज्वल वही हुआ शशाङ्क-कान्तान् ।
“गुणान्” – गुणो को।
“वक्तुं” – कहने के लिए, कहने में ।
“क्षमः” – समर्थ है ?
“वा” – अथवा।
“कल्पान्त– काल– पवनोद्धत” – प्रलय काल (Doomsday) के तूफानी (gales, very strong wind) तेज थपेड़ों से उछल रहे है मगरमच्छ घड़ियाल आदि भयंकर जल जंतु जिसमे ऐसे।
विशेषार्थ – (कल्प) – युग, उसका (अन्त) कल्पान्त, वही हुआ कल्पान्तकाल अर्थात् प्रल्यकाल, उस प्रलयकाल की प्रचण्ड-तेज आंधी में उछल रहा है मगरमच्छ घड़ियाल आदि जलचरों का समुदाय, वही हुआ कल्पान्त– काल– पवनोद्धत ।
शास्त्रोक विधान है कि जब प्रलय काल होता है तब भयंकर आंधी चलती है और इससे बड़े बड़े समुद्रों में उत्ताल (जिसका तल उठा हो, convex) तरंगें उठती हैं जिससे कि उसके अथाह जल में रहने वाले मगरमच्छ घड़ियाल आदि जलचरों का समूह ऊपर आ-आकर उछलने-कूदने लगता है और फिर समुद्र का वह अतल (बिना पेंदे का )-जल पृथ्वी पर सर्वत्र फैल कर प्रलयंकारी (Catastrophic) दृश्य उपस्थित कर देता है।
“अम्बुनिधिं” – जल-राशि – समुद्र को
विशेषार्थ – (अम्बु) – जल, उसका (निधि) – भण्डार, वही हुआ अम्युनिधि अर्थात् समुद्र !
“भुजाभ्याम्” – दोनों भुजाओं से ।
“तरीतुम्” – तैरने के लिए तैरने में।
“क:” – कौन मनुष्य?
“अलम्” – समर्थ है ?
HINDI MEANING OF BHAKTAMAR MAHIMA/PAATH-4
हे गुणों के सागर भगवन् आपके चंद्रमा जैसी कांति वाले अर्थात स्वच्छ/पवित्र गुणों को कहने के लिए बृहस्पति (देवताओं के गुरु) के सदृश्य/समान भी बुद्धि वाला कौन पुरुष समर्थ हो सकता है अर्थात नहीं हो सकता। जैसे प्रलयकाल के तूफानी पवन से उछाल मारते भयानक मगरमच्छों से भरे हुए समुद्र को अपनी भुजाओं से तैर कर कौन क्षमतावान पार कर सकता है? अर्थात कोई भी नहीं ।
हे गुणनिधे ! आप गुणों से परिपूर्ण हुए है, आपके अनंत गुण चन्द्रमा के तुल्य निर्मल है । उनका वर्णन करने में वृहस्पति जैसा बुद्धिमान सुर गुरु भी समर्थ नहीं है । तब फिर किसकी शक्ति है जो आपके सम्पूर्ण गुणों का वर्णन कर सके ? अर्थात् किसी में भी ऐसी शक्ति नहीं है । उदाहरणार्थ–प्रलय काल के पवन से उद्वेलित ऐसे समुद्र को जिसमे मगरमच्छ घड़ियाल आदि भयंकर जलचर जन्तु उथल पुथल होकर उछल रहे हों कौन व्यक्ति अपनी दोनों भुजाओं से तैर कर पार करने में समर्थ है ? अर्थात् कोई भी नहीं ।
स्तोत्र रचना में तत्पर आचार्य श्री कहते हैं कि हे आदीश्वर देव! आप तो गुणों के महासागर सदृश शान्त है अर्थात् आप अनन्त गुणों से परिपूर्ण है और फिर प्रत्येक गुण चन्द्रमा की भांति उज्ज्वल है। इन सब गुणों की यथार्थ वन्दना वृहस्पति तुल्य प्रतिभा सम्पन्न व्यक्ति भी जब नहीं कर सकता तब फिर भला मेरी क्या सामर्थ्य जो आपके गुणों का वर्णन कर सकू ? आपके यथार्थ गुणों का वर्णन करने के लिए कितना ही प्रयास करें किन्तु नहीं कर सकते । विशेष स्पष्टीकरण करते हुए वह कहते हैं कि जहाँ प्रलय काल की पवन जैसी आंधी चल रही हो और मगरमच्छ घड़ियाल आदि जलचर प्राणी जिसमें उछल रहे हों ऐसे महासागर को दोनों भुजाओं से तर कर सकने में कौन-सा मनुष्य समर्थ हो सकता है ? तात्पर्य यह कि ऐसा कोई नहीं कर सकता।
इसी भांति कोई मनुष्य कितना ही बुद्धिमान हो, विद्वान हो, महापण्डित की ख्याति से विभूषित हो तो भी आपके गुणों का यथावत् वर्णन नहीं कर सकता।
यहाँ यह समझने योग्य वस्तु है कि गुण अनंत हैं और वाणी क्रमवर्ती है तथा गुण चैतन्यमयी (consciousness) हैं तथा वाणी जड़ शब्दमयी है इसलिए वाणी द्वारा जिनेश्वरदेव के सब गुणों का यथावत् वर्णन किसी भी प्रकार नहीं हो सकता। फिर तीर्थकर भगवन्त के एक ही गुण का वर्णन करना होता तो वह भी वाणी के द्वारा संभव नहीं था क्योंकि शब्दशक्ति मर्यादित है अतएव सम्पूर्ण गुणों का वर्णन वाणी में नहीं आ सकता।
ENGLISH MEANING OF BHAKTAMAR MAHIMA/PAATH-4
O Ocean of virtues! Can even Brihaspati, the guru of the Lords of heavens, with the help of his outstanding wisdom, narrate your (Lord Adinatha) infinite virtues (merits, moral excellence) crystal clear and blissful as the moon? (certainly not.) Is it possible for any capable man to swim (with both his arms) across the crocodiles and alligators infested ocean, lashed by gales (very strong winds) of the Doomsday (certainly not.)
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