Bhaktamar Stotra Sanskrit-3 Lyrics । भक्तामर स्तोत्र श्लोक/महिमा/पाठ/चालीसा -3

Bhaktamar Stotra-3 Shloka/Mahima/Paath/Chalisa

Sanskrit

बुद्ध्या विनाऽपि विबुधार्चित- पादपीठ !

स्तोतुं समुद्यत- मतिर् विगत- त्रपोऽहम् 

बालं विहाय जल- संस्थितमिन्दु- बिम्ब-

मन्यः इच्छति जनः सहसा ग्रहीतुम्  ।।3।।

BHAKTAMAR STOTRA 3 HINDI MEANING
Bhaktamar Stotra/Mahima-3 (Hindi Meaning)

कड़े शब्दों के शब्दार्थ (Meaning of difficult Sanskrit words)

“विबुधार्चित- पादपीठ” – सुरेंद्रो द्वारा समर्चित (worshipped, adored, honoured) है पद-सिंहासन जिनका ऐसे है जिनश्वर देव!
विशेषार्थ – (विबुध) अर्थात् देव उनके द्वारा (अर्चित) पूजित अत: विबुधाचित, ऐसा वह पादपीठ अर्थात् पग रखने का आसन, वही हुआ विबुधार्चित- पादपीठ । यह पद जिनेन्द्र प्रभु का विषय होते हए भी यहाँ सम्बोधन (किसी को पुकारने या बुलाने के लिए प्रयुक्त शब्द) के रूप में प्रयुक्त (Used) हुआ है। देव गण जय जिनेन्द्रदेव के चरणों की पूजा करते है, तब उनके पादपीठ की पूजा भी स्वयमेव (Automatically) हो जाती है।

विगतस्त्रपः  – लल्जा रहित, निर्लज्ज, मर्यादा विहीन ।
विशेषार्थ –  (विगत) विशेषतापूर्वक गई है जिसकी (त्रपा) लज्जा-शर्म-हया वही हुआ विगतस्त्रपः

अहम् -मैं, माननुगाचार्य ।

बुद्धद्या विना अपि” बुद्धि विहीन होने पर भी बुद्धि अर्थात् ज्ञानशक्ति/प्रज्ञा ।
स्तोतुम् (आपकी) स्तुति करने के लिए। नोट यहाँ पर भी त्वां पद को अध्याहार (किसी वाक्य में ऐसे शब्दों का न होना जो उसका आशय/ तात्पर्य/meaning स्पष्ट करने के लिए आवश्यक हों) मे लिया गया है।

समुद्यतमति– तत्पर हुई है बुद्धि जिपकी ऐसा वह।
विशेषार्थ(समुद्यत) सम्पूर्ण रूप से उद्यत/तत्पर/willing है जिसकी (मति) अर्थात् बुद्धि वही हुआ समुद्यतमति

जलसंस्थितम् – जल में पड़े हुए।
विशेषार्थ- (जले) पानी में, (संस्थित) पड़ा हुआ वही हुआ जल संस्थित।

“इन्दुबिम्बम्” – चन्द्र के प्रतिविम्ब को/चन्द्रमा की प्रतिच्छाया को/ Shadow ।

विशेषार्थ(इन्दु) चन्द्रमा, उसका (बिम्ब) अर्थात् प्रतिबिम्ब वही हुआ इन्दुबिम्ब, उसकी अर्थात् चन्द्रमा के प्रतिविम्ब को।

बालम् विहाय बालक को छोड़कर, बालक बिना।

अन्यः : जन:” –  दूसरा कौन मनुष्य ?

सहसा– बिना विचारे, तत्काल-जल्दी से।

 “ग्रहीतुम्”- पकड़ने के लिए, ग्रहण करने के लिए।

“इच्छति” – इच्छा करता है/चाहता है ! अर्थात कोई भी नहीं चाहता।

Hindi Meaning (भावार्थ) of Bhaktamar Stotra/Mahima No-3

देवों के द्वारा पूजित हैं चरण रखने का आसन (सिंहासन) जिनका, ऐसे हे तीर्थंकर भगवन बुद्धि के बिना भी में लज्जा को छोड़कर आपकी स्तुति करने के लिए प्रयत्नशील (तत्पर बुद्धि वाला) हुआ हूँ। मेरा यह प्रयास वैसा है जैसे जल में दिखाई पड़ने वाले चन्द्रमा के बिम्ब को बालक को छोड़कर अन्य कौन पुरुष ऐसा है जो बिना विचारे एकाएक पकड़ने की इच्छा करता है, अर्थात कोई भी नहीं।

हे सुर गण पूजित पादपीठ !
बुद्धिहीन होने पर भी जो मैं आपकी स्तुति करने के लिए तत्पर हुआ हूँ, यह मेरी निर्लज्जता एवं धृष्टता ही है भला, जल में दृश्यमान चन्द्रमा के प्रतिबिम्ब को पकड़ने का साहस एक नादान अबोध बालक के अतिरिक्त और कौन कर सकता है ? अर्थात् कोई नहीं।

स्तोत्र रचना की प्रतिज्ञा (pledge) कर चुकने के पश्चात् मुनिवर श्री मानतुगाचार्य कहते है कि हे जिनेन्द्र देव ! आप परमपूज्य देवाधिदेव हैं तभी तो देवगण आपके पावन चरणों की भक्तिपूर्वक अर्चना करते हैं । यही नहीं वरन् आपके पादपीठ अर्थात् पद विन्यास के आसन को भी पूजते है । कहाँ वे कहाँ हम ? आपकी स्तुति हम किस प्रकार करें? तद्रूप (उसी के रूप का)  बुद्धि हमारे पास तो है नही । लोक व्यवहार तो ऐसा है कि जिस कार्य में अपनी बुद्धि की पहुँच हो वही करना सर्वथा योग्य है। जो कार्य शक्ति के बिना किया जाता है वह बीच में ही छोड़ना पड़ता है । अतः उसके हास्यास्पद/ridiculous होने का अवसर भी आता है । परन्तु आपकी स्तुति करने का अदम्य (जो दबाया न जा सके / प्रबल / प्रचंड) उत्साह हमारे हृदय में इतना प्रबल है कि अपनी शक्ति की मर्यादा तोड़ कर भी मैं इस बृहत्तर (और बड़ा / greater) कार्य के करने को तत्पर हुआ हूं ।

जल में चन्द्रमा का लुभावना प्रतिबिम्ब दिखाई देता है, परन्तु ऐसी सुन्दर वस्तु को पकड़ने का प्रयत्न कोई भी बुद्धिमान मनुष्य नहीं करता, क्योंकि उसमें उसे सफलता मिलने का विश्वास ही नहीं होता। हाँ, नादान और अबोध बालक अवश्य ही उस प्रतिबिम्ब को पकड़ने का असफल प्रयास करता है।
आपकी स्तुति के लिए मेरी तत्परता ठीक बालक के प्रयत्न की तरह ही है । अर्थात् मात्र बाल चेष्टा है।

इसी पद में आचार्य श्री का कर्तृत्व [दर्शनशास्त्र मे कार्य में उपादान (उपयोग में लाना) के विषय में ज्ञान प्राप्त करने या कोई काम करने की इच्छा; और उसके लिए होनेवाला प्रयत्न या प्रवृत्ति] बुद्धि रहित अपनी लघुता का भी प्रदर्शन पाया जाता है। यद्यपि ये एक समर्थ (able) और वर्चस्वी (शक्तिशाली,तेजस्वी) प्रतिभा सम्पन्न चारित्र्यनिष्ठ (व्यक्ति ईश्वर के समान है विद्वान् सुकवि हैं तथापि अपनी गिनती अबोध बालकों में ही करते हैं । निश्चयत: जो महान् होते हैं वे कभी भी बड़े बोल नहीं बोलते ।

क्योंकि : लघुता से प्रभुता मिले, प्रभुता से प्रभु दूरलोकोक्ति प्रसिद्ध है।

English Meaning of Bhaktamar Stotra/Mahima No-3

O Jina! Your auspicious footprints are worshiped and honoured by the Lords of the heavens (Devendra). I have no wisdom to even begin composing a verse of prayer to you. Please pardon my insolence and lack of wisdom even to want to attempt such an impossible task. This is like the act of an innocent child who suddenly wishes to grasp the disc of the moon reflected in water. But still, inspite of my ignorance, out of shamelessness alone I am trying to eulogize the supreme soul, Lord Adinatha.

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BHAKTAMAR STOTRA SANSKRIT LYRICS MAHIMA PAATH​

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