Bhaktamar Stotra Sanskrit-12 [Mahima Path Lyrics]। भक्तामर स्तोत्र

Bhaktamar Stotra-12 Shloka/Mahima/Paath​

Sanskrit

यैः शान्तराग- रुचिभिः परमाणुभिस्त्वं

निर्मापितस्त्रि- भुवनैक- ललाम- भूत!  ।

तावन्त एव खलु तेऽप्यणवः पृथिव्यां

यत्ते समान- मपरं हि रूपमस्ति  । । 12 । ।

Hindi

जिन जितने जैसे अणुओं से, निर्मापित प्रभु तेरी देह

थे उतने वैसे अणु जग में, शान्त-रागमय निःसन्देह 

हे त्रिभुवन के शिरोभाग के अद्वितीय आभूषण-रूप

इसीलिए तो आप सरीखा, नहीं दूसरों का है रूप ॥12॥

English

Yaih Shanta-raga-ruchibhih Paramanubhistvam

Nirmapitastri-bhuvanaik-lalaam-bhuta

Tawanta Eva Khalu Tepyanavah Prithvyam

Yatte Samana-maparam Nahi Rupamasti ॥12॥

Bhaktamar Stotra/Mahima/Paath Sanskrit No-12 with Hindi Meaning​

BHAKTAMAR STOTRA 12 HINDI MEANING
Bhaktamar Stotra/Mahima-12 (Hindi Meaning)

Bhaktamar Strotra 12th Shloka । भक्तामर स्तोत्र श्लोक 12 (With Hindi meaning, lyrics, Paath, text, image presentation)​

कड़े शब्दों के शब्दार्थ (Meaning of difficult Sanskrit words)​

त्रि– भुवनैक- ललाम- भूत! – हे अद्वितीय त्रैलोक्य शिरोमणि – हे तीन लोक के अनुपम अलंकार रूप (भगवान्!)।
विशेषार्थ – (त्रि) तीन, (भुवन) लोक का समुदाय वही हुआ (त्रिभुवन) उसमें (एक)-अद्वितीय-अनुपम ऐसा (ललामभूत)-अलंकाररूप-शिरोभूषणरूप । यह पद जिनदेव के संबोधन रूप में लिया गया है । ललाम शब्द का सामान्य अर्थ सुन्दर श्रेष्ठ रमणीय है, परन्तु विशेष अर्थ में सिर से आगे मस्तक के आभरण को ललाम कहते हैं।

“शान्तराग- रुचिभिः” – मोह, ममता, राग आदि के शान्त (क्षय) होने से प्रशम रस की कान्ति प्रकट हुई है जिसमें ऐसे-वीतरण-भावना के उत्पादक।
विशेषार्थ(शान्त) क्षय हो गया है (राग) मोह ममता जिनकी वे हुए शान्तराग उसकी (रुचि) कान्ति-से युक्त अर्थात् जिसके मुख मण्डल पर प्रशम रस की कान्ति दैदीप्यमान है ।

“यैः परमाणुभि:” – जिन परमाणुओं से।
विशेषार्थ – जो अणु अत्यन्त सूक्ष्म है अर्थात् पुद्गल द्रव्य का वह अविभागी मूक्ष्म प्रतिच्छेद जिमका कि अन्य विभाग न होता हो वह परमाणु कहलाता है, उन परमाणुओं के द्वारा।

“स्वम्” – तुम।

“निर्मापित:” निर्मापित किये गए हो – बनाये गए हो।

“ते” – वे ।

“अगव:” – परमाणु ।

“अपि” – भी।

“खलु”  –  निश्चय से।

“तावन्त” – उतने।

“एव” – ही।

“यत्” – क्योंकि ।


“पृथिव्यां” – समस्त पृथ्वी तल पर ।

“ते” – तुम्हारे।

“समानम्” – सदृश – समान ।

“अपरम्” – कोई दूसरा।

“रूपम्” – रूप-सौन्दर्य ।

“न हि” – नहीं।

“अस्ति” – है।

Hindi Meaning (भावार्थ) of Bhaktamar Stotra/Mahima No-1​​2

तीनो लोको के एकमात्र मस्तक स्वरूप (सर्वश्रेष्ठ) हे भगवन जिन राग रहित सुन्दर परमाणुओं से आपके शरीर की संरचना हुई है, वे परमाणु भी वास्तव में उतने (जितने आपके शरीर में है) ही थे क्योंकि इस पृथ्वी पर आपके समान अन्य रूपवान नहीं है I

हे त्रैलोक्य मण्डन वीतराग देव !
आपके परमौदारिक शरीर का निर्माण प्रशान्त रस के जिन राग रहित दैदीप्यमान परमाणुओं से हुआ है वे कुल परमाणु निश्चित रूप से उतनी ही संख्या में थे यही कारण है कि इस भूमण्डल पर आप जैसा सुन्दर रूप अन्य किसी में दृष्टिगोचर नहीं होता।

पिछले छंद में स्तुतिकार ने सामान्य रूप से अरिहंत प्रभु के सौंदर्य की अपूर्वता का वर्णन किया था। प्रस्तुत छंद में उनकी दिव्य देह की सुन्दरता का वर्णन विशेष रूप से कर रहे है । साथ ही उनके इस अद्वितीय सौन्दर्य प्राप्ति का क्या कारण है वह भी इसमें परिलक्षित होता है। यही नहीं बल्कि उनके इस अपेक्षित कथन से अन्य देवों का सराग सौन्दर्य स्वयमेव धुंधला पड़ जाता है।

आचार्यश्री कहते हैं कि हे नाथ ! आप तीनों लोकों के शृङ्गार हैं, आपकी दिव्य देह अद्वितीय सौन्दर्य से परिपूर्ण है । आपके मुख मण्डल से प्रशान्त रस से उत्पन्न तेज झलक रहा है चुकीं आपका अन्तर समरस से अभिभूत है इसलिए आपका बाह्य परमौदारिक शरीर भी उतना ही दैदीप्यमान हो रहा है और इस प्रकार आप शान्त रस की साक्षात मूर्ति हैं । मुख मुद्रा पर झिलमिलाने वाली शान्ति एवं वीतरागता का कारण क्या है ? उसका उत्तर देते हुए वे कहते है कि जिन पुद्गल परमाणुओं से आपकी इस दिव्य देह का निर्माण हुआ है वे कुल परमाणु राग  रहित थे और संख्या में भी उतने ही थे जितने कि आपके शरीर में विद्यमान हैं। अगर उनमें से कुछ भी परमाणु शेष रहे होते तो आप जैसी शान्ति की मूर्ति अन्यत्र भी दिखलाई देती, परन्तु ऐसा तो है ही नहीं। तात्पर्य यह कि आपका रूप एक अनोखा, अनुपम और निराला ही है जिसकी तुलना विश्व में किसी भी वस्तु से नहीं की जा सकती।