“अनिमेष- विलोकनीयं” – बिना पलक झुकाए हुए देखने योग्य अर्थात् टकटकी लगाकर दर्शन करने योग्य ।
विशेषार्थ – (निमेष) आंख की पलकें, उससे रहित वही हुआ अनिमेष, उसके द्वारा (विलोकनीय) – दर्शनीय अर्थात् देखने योग्य ।
तात्पर्य यह कि आंख के परदे झुकाए बिना (टिमकार रहित) नेत्रों से निरन्तर दर्शन करने योग्य ।
“भवन्तम्” – आपको – श्री जिनेन्द्र देव को।
“दृष्ट्वा” – देख करके ।
“जनस्य” – मनुष्य का ।
“चक्षु:” – नेत्र।
“अन्यत्र” – और कहीं पर – अन्य किसी ठौर पर
“तोषम्” – सन्तोष को, परितोष को।
“न” – नहीं।
“उपयाति” – प्राप्त करता है – पाता है।
“दुग्ध- सिन्धोः” – क्षीर सागर के ।
“शशिकर- द्युति” – चन्द्रमा की किरण के समान कांति वाली धवल – शुभ्र।
विशेषार्थ – (शशि) चन्द्र, उसकी (कर) किरण, उसकी (द्युति) कान्ति है जिसमें।
“पयः” – जल, क्षीर, दुग्ध को।
“पीत्वा” – पीकर ।
“क:” – कोन (पुरुष)?
“जलनिधे” – (लवण) समुद्र के । दरिया के।
“क्षारम्” – खारे।
“जलम्” – पानी को।
“रसितुम्” – चखने के लिए।
“इच्छेत्” – इच्छा करेगा !