“भुवन- भूषण” – हे विश्व के शृंगार!
विशेषार्थ – (भुवन) लोक, जगत, विश्व, उसके (भूषण) मंडन, अलंकार, शृंगार, वही हुआ भुवनभूषण।
“भूत- नाथ!” – हे जगन्नाथ- हे प्राणियों के स्वामिन्!
विशेषार्थ – (भूत) प्राणी। उनके (नाथ) स्वामी, वही हुए भूतनाथ । लौकिक शास्त्रों में भूतनाथ शब्द शंकर जी के अर्थ में भी प्रसिद्ध है।
“भूतै:” – वास्तविक, प्रभूत, विपुल, विद्यमान ।
“गुण:” गुणों के द्वारा ।
“भवन्तम्” – आपको।
“अभिष्टुवन्त:” – भजने वाले भव्य पुरुष ।
“भुषि” – पृथ्वी पर, भूतल-तल पर ।
“भवतः” – आपके।
“तुल्या” – सदृश, समान ।
“भवन्ति” – हो जाते है।
“इति” – (यह) इति शब्द यहां पर अध्याहार से ग्रहण किया गया है।
“अति” – अधिक, बहुत ।
“अद्भुतम्”– आश्चर्यजनक, विचित्र, विलक्षण ।
“न” – नहीं है।
“वा” – अथवा ।
“ननु” – निश्चय से।
“तेन” – उस (मालिक अथवा स्वामी से)।
“किम्” – क्या।
प्रयोजनमस्ति – लाभ है।
“यः” – जो (मालिक)
“इह” – इस लोक में।
“आश्रितम्” – अपने अधीन सेवक को
“भूत्या” – विभूति से, धन-सम्पत्ति से, ऐश्वर्य से ।
“आत्मसमम्” – अपने समान।
“न” – नहीं।
“करोमि” – करता है।