Bhaktamar Stotra Sanskrit-13 [Mahima Path Lyrics]। भक्तामर स्तोत्र
Bhaktamar Stotra-13 Shloka/Mahima/Paath
Sanskrit : (चोर भय व एनी भय निवारक काव्य) | निरुपम जिन मुख-मण्डल
वक्त्रं क्व ते सुर- नरोरग- नेत्रहारि,
निःशेष- निर्जित- जगत्- त्रितयोपमानम् ।
बिम्बं कलङ्क- मलिनं क्व निशाकरस्य
यद्वासरे भवति पाण्डु पलाश- कल्पम् । । 13 । ।
Hindi
कहाँ आपका मुख अति सुन्दर, सुर-नर-उरग नेत्र हारी
जिसने जीत लिये सब जग के, जितने थे उपमाधारी ।
कहाँ कलंकी बंक चन्द्रमा, रंक-समान कीट सा दीन
जो पलाश-सा फीका पड़ता, दिन में हो करके छवि-छीन । । 13 । ।
English
Vaktram Kwate Sura-narorag-netrahari
Nihshesha-nirjita Jagat-tritayo-pamanam ।
Bimbam Kalanka-malinam Kwa Nishakarasya
Yadwasare Bhavati Pandu-palasha-kalpam । । 13 । ।
Bhaktamar Stotra/Mahima/Paath Sanskrit No-13 with Hindi Meaning
कड़े शब्दों के शब्दार्थ (Meaning of difficult Sanskrit words)
“सुर- नरोरग- नेत्रहारि” – देव, मनुष्य और भवनवासी नागकुमार जाति के देवेन्द्र (धरणेन्द्र) आदि के नेत्रों को हरण करने वाला।
विशेषार्थ – (सुर) देव, (नर) मनुष्य और (उरग) भवनवासी देव उनके (नेत्र) लोचन, उनको हरण करने वाला अर्थात् अतीव अनुपम सुन्दर।
“निःशेष- निर्जित- जगत्- त्रितयोपमानम्” – सम्पूर्ण रूप से तीनों लोकों के उपमानों को जीतने वाला अर्थात् उपमा रहित ।
विशेषार्थ – (निःशेष) सम्पूर्ण रूप से, (निर्जित) जीत लिए है, जिसने (जगत्त्रितय) तीनों लोकों के (उपमान) वह वस्तु जिसके साथ उपमेय की तुलना की जावे उसे उपमान कहते है । यथा चन्द्र कमल दर्पण आदि ।
“ते” – तुम्हारा।
“वक्त्रम्” – मुख, आनन ।
“क्व” – क्या, कहाँ ?
“कलङ्क- मलिनं” – काले-काले धब्बे से मलीन ।
विशेषार्थ – (कलङ्क) दाग या धब्बा, उससे (मलिन) मैला। (कलङ्क) यद्यपि कालिमा को कहते है, तथापि विशेष रूप से उसका प्रयोग चन्द्रमा के विद्यमान काले धब्बे के लिए किया जाता है।
“निशाकरस्य” – चन्द्रमा का।
विशेषार्थ – (निशा) रात्रि, उसका (आकर) भण्डार अर्थात् चन्द्रमा ।
(बिम्बं) मण्डल, बिम्ब ।
“यत्” – जो (बिम्ब)।
“वासरे” – दिन में।
पाण्डु पलाश- कल्पम् – जीर्ण-शीर्ण हुए टेसू (ढाक) के पत्र के समान फीका।
विशेषार्थ – (पाण्डु) जीर्ण-शीर्ण फीका, ऐसा (पलास) – किंशुक पत्र (टेसू, ढाक, छेवला) उसके (कल्पम्) समान। पहिले पत्ते का रंग हरा होता है किन्तु जब वह जीर्ण हो जाता है तब उसका रंग पीला अर्थात् फीका पड़ जाता है।
“भवति” – होता है।
Hindi Meaning (भावार्थ) of Bhaktamar Stotra/Mahima No-13
देवता मनुष्य और सर्प/धरनेंद्र/नागकुमार (उर्ध्व, मध्य और अधो लोक) के नेत्रों को हरने वाले आपके मुखमण्डल (निष्कलंक) की कहाँ कोई तुलना कर सकता है भगवन जिसने तीनों लोकों के उपमाओं/उद्धहरणों को सम्पूर्ण रूप से जीत लिया है I चन्द्रमा का कलंक से मलिन बिम्ब कहाँ जो कि प्रातः काल होते ही ढाक के पत्ते (दोना-पत्तल जिससे बनाये जाते है) के समान फीका हो जाता है I
हे सौन्दर्य सिन्धो !
जिसने देव, मनुष्य और भवनवासी देव देवेन्द्रों के नयनों का हरण कर लिया है और जिसके आगे तीनों जगत् के सारे उपमान फीके पड़ गये हैं ऐसे आपके अद्वितीय मुख-मण्डल की तुलना चन्द्र-मण्डल से नहीं की जा सकती क्योंकि एक तो चन्द्रमा कलङ्की है, दूसरे वह दिन में जीर्ण पत्र की तरह निस्तेज, फीका और पीला पड़ जाता है।
स्तुतिकार देवाधिदेव जिनेश्वर प्रभु के अनुपम रूप सौन्दर्य का वर्णन करने के पश्चात् अब प्रस्तुत छंद में उनके मुख की सुन्दरता की उपमा के लिए उपमानों की खोज कर रहे हैं । अन्यान्य कवियों के समान वे चन्द्रमा को उपमान मान सकते थे परन्तु यहां पर आचार्यश्री उसकी निस्तेजता का सहेतुक वर्णन करते हुए कहते हैं कि- हे परम तेजस्विन् ! आपका अतीव सुन्दर दैदीप्यमान मुख देवताओं, मनुष्यों, विधाघरों एवं धरणेन्द्रों के भी लोचनों को हरण करने वाला है। आपके उस अनुपम मुख ने सम्पूर्णतया तीनों लोकों के सभी उपमानों पर विजय प्राप्त कर ली है अर्थात् त्रिभुवन की सारी उपमाएँ उसकी तुलना मे निस्तेज और फीकी पड़ गई हैं। बहुधा कविगण मुख का उपमान चन्द्रमा को ही बनाया करते हैं परन्तु वस्तुतः चन्द्रमा सुन्दर होते हुए भी कलङ्की माना जाता है। सुदूरवर्ती चन्द्रमा के काले धब्बे को यहाँ से बखूबी देखा जा सकता है। ऐसे कलङ्की चन्द्रमा को आपके अनपमेय मुख की तुलना में कदापि नहीं रखा जा सकता। इसलिए आचार्यश्री कहते हैं कि कहाँ तो कालिमा के कारण मैला चन्द्रमा और कहाँ आपका अनुपम मुख मण्डल—यही नहीं कि चन्द्रमा कलङ्की है परन्तु दिन में वही चन्द्रमा ऐसा निस्तेज हो जाता है जैसे कि जीर्ण पलास का पत्र फीका पड़ जाता है। परन्तु जिनेश्वर देव का मुख तो अहोरात्री तेजस्वी और कान्तिमान रहता है। कवि ने यहाँ विशेष रूप से श्लोक में वक्त्र शब्द का ही उपयोग क्यों किया ? तीर्थकर केवली अवस्था मे अपनी दिव्यध्वनि खिराते है अतः श्लोक में वक्त्र शब्द का ही उपयोग किया गया है ।